विदेशी कर्ज में उछाल: मोदी सरकार के कार्यकाल में भारत का बढ़ता बोझ
-
2014 में भारत का विदेशी कर्ज 440.6 अरब डॉलर से बढ़कर 2024 में 711.8 अरब डॉलर हो गया।
-
विदेशी कर्ज की वृद्धि में सबसे बड़ी छलांग 2023-2024 में देखी गई।
-
कर्ज का बढ़ना आर्थिक विकास के प्रयासों को दर्शाता है, लेकिन चिंता का विषय भी है।
भारत के विदेशी कर्ज में लगभग 61% की वृद्धि 2014 से 2024 के बीच देखी गई है, जिसने न केवल अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को उजागर किया है बल्कि सरकार के विकासात्मक कदमों का भी संकेत दिया है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उस समय देश पर विदेशी कर्ज का बोझ 440.6 अरब डॉलर था। इसके बाद, हर साल में कर्ज में वृद्धि देखी गई, जो 2024 तक 711.8 अरब डॉलर तक पहुंच गया।
इस अवधि में, सबसे बड़ा उछाल 2023-2024 में देखा गया, जब कर्ज में 74.7 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। यह वृद्धि मुख्य रूप से वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में बदलावों, महामारी के बाद की रिकवरी, और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के निवेश के कारण हुई। विशेष रूप से, 2020-2021 की अवधि में कोविड-19 महामारी के दौरान आर्थिक सहायता के लिए लिए गए कर्ज का भी प्रभाव रहा है।
इस वृद्धि को देखते हुए, कई आर्थिक विश्लेषकों ने चिंता जताई है कि यह वृद्धि कितनी स्थायी है और इसका दीर्घकालिक प्रभाव क्या हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने भी इस पर ध्यान दिया है कि जबकि जीडीपी के अनुपात में कर्ज का अनुपात स्थिर रहा है, विदेशी कर्ज का स्तर एक महत्वपूर्ण कारक है।
हालांकि, सरकार का तर्क है कि यह कर्ज विकास की दिशा में एक निवेश है, जिसमें सड़क, रेल, और डिजिटल बुनियादी ढांचे के विकास की योजनाएं शामिल हैं। इसके अलावा, विदेशी मुद्रा भंडार की तुलना में कर्ज का अनुपात अभी भी प्रबंधनीय स्तर पर है, जो भारत को अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने की अनुमति देता है।
इस विषय पर और अधिक गहन विश्लेषण और व्यापक संदर्भ के लिए, उपलब्ध वेबसाइट्स और प्रकाशनों को देखा जा सकता है, जो विभिन्न सरकारी रिपोर्ट्स और विश्लेषणों पर आधारित हैं।