उत्तराखंड के देहरादून में एक फर्जी एनकाउंटर की एक ऐसी कहानी जिसमें 18 पुलिस वालों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई

एक बेकसूर के सीने में 22 गोलियां दागी गई आखिर पुलिस को क्यों करना पड़ा यह फर्जी एनकाउंटर
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4 जुलाई 2009 की सुबह को देहरादून के सभी अखबारों के फ्रंट पेज पर एक फोटो छपी थी जिसमें जंगल में एक डेडबॉडी पड़ी हुई थी और उसके अगल-बगल पुलिस वालों का जमावड़ा था। खबर छपी थी कि 3 जुलाई 2009 को एक बदमाश ने पुलिस चौकी प्रभारी का सर्विस रिवाल्वर छीन कर जंगल की तरफ भाग गया । क्योंकि उस दिन तत्कालीन राष्ट्रपति माननीय प्रतिभा पाटिल जी के काफिले
फ़ोटो क्रेडिट हिन्दुस्तान टाइम्स
फ़ोटो क्रेडिट हिन्दुस्तान टाइम्स
को देहरादून से मसूरी की तरफ बढ़ना था। इसलिए पुलिस वालों ने बदमाश का पीछा किया जो कि जंगल की तरफ भागा था। और कुछ समय बाद मुठभेड़ में उसका एनकाउंटर कर दिया।
 लेकिन जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट सामने आई तो सारी कहानी ही पलट गई थी। पोस्टमार्टम में मृतक के शरीर पर 28 चोटों के निशान थे और 22 गोलियां लगी थी। 
उसके बाद जब यह केस सीबीआई के पास गया तो परत दर परत कहानी खुलती गई । एमबीए के छात्र रणवीर जो कि देहरादून अपने इंटरव्यू के लिए आया था और सुबह इंटरव्यू देने के बाद वह अपने दोस्तों को मिलने के लिए बाइक पर निकला, तभी डालनवाला क्षेत्र के चौकी प्रभारी ने उसको रोका और वहां पर कहासुनी हुई जो की हाथापाई में तब्दील हो गई।सीबीआई की चार्जशीट अनुसार पुलिस वालों ने रणवीर को कस्टडी में थर्ड डिग्री से प्रताड़ित किया और हालत बिगड़ने पर उसको जंगल में ले जाकर फर्जी एनकाउंटर कर उस पर 22 गोलियां दाग दी। 
इस पूरे मामले में दिल्ली के हजारी कोर्ट ने 18 पुलिस वालों को उम्र कैद की सजा सुनाई और बाद में 11 पुलिसकर्मियों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया।