विदेश यात्रा के आरंभ में प्रधानमंत्री का हवाई जहाज़ पर सवार होना
राष्ट्र-राज्य की कुछ परंपराएं स्थापित हो जाती हैं तो चलती ही रह जाती है। उन परंपराओं के महत्व के बने रहने या नहीं बने रहने में किसी की दिलचस्पी नहीं होती है। मैं उस तस्वीर को ध्यान से देखने लग जाता हूं जो प्रधानमंत्री के विदेश दौरे के आरंभ में ली जाती है। मैं इसे किसी भी विदेश यात्रा की आरंभिक तस्वीर कहता हूं। हवाई जहाज़ की सीढ़ियां चढ़ते और चढ़ने के बाद मुड़ कर हाथ हिलाने की तस्वीर विदेश यात्रा की प्रमाणिक तस्वीरों में से एक हो चुकी है। क्यों यह तस्वीर इतनी ज़रूरी है, इसके बारे में अंदाज़ा ही लगा सकता हूं। क्या सभी देश के प्रधानमंत्री विदेश जाने पर ऐसी तस्वीरें खिंचाते हैं? क्या वे भी दौड़ दौड़ कर या तेज़ चलकर हवाई जहाज़ में सवार होते हैं ?इस प्रश्न का ठोस उत्तर मेरे पास नहीं है। भारत में यह परंपरा 2014 से पहले की है। सभी प्रधानमंत्री की विदेश जाने की तस्वीर होगी। इन तस्वीरों का अकादमिक पाठ होना चाहिए। अंदाज़ा लगाना चाहिए कि ये तस्वीरें क्या कहती हैं।
सही में प्रधानमंत्री विदेश जा रहे हैं। यह रही जाने की तस्वीर। प्रधानमंत्री हवाई जहाज़ से ही विदेश जा रहे हैं। यह रही हवाई जहाज़ में सवार होने से पहले की तस्वीर। प्रधानमंत्री हवाई जहाज़ के भीतर ही बैठे हैं। इस तरफ की सीढ़ी से चढ़कर दूसरी तरफ की सीढ़ी से उतर नहीं गए हैं। यह रही जहाज़ के भीतर बैठे होने की तस्वीर। भारत में कई लोग झूठ बोलते हैं कि विदेश गए थे। लोग साबित करने के लिए टिकट और सूटकेस का टैग बचाकर रखते भी हैं। क्या इन आशंकाओं का जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री के हवाई जहाज़ में सवार होने की तस्वीर होती है? नहीं नहीं। प्रधानमंत्री विदेश दौरे पर गए हैं, इस पर शक कैसे किया जा सकता है। फिर इन तस्वीरों के ज़रिए कोई राष्ट्र अपनी जनता से क्या कहना चाहता है? क्या यह तस्वीर इस ग्रंथी का प्रदर्शन करती है कि विदेश जाना बहुत बड़ी बात है। लेकिन प्रधानमंत्री के लिए तो यह सामान्य बात है। जब चाहें तब जा सकते हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि सत्ता की शक्ति प्रदर्शन में हवाई जहाज़ पर चढ़ने की तस्वीर का एक ख़ास स्थान है। तभी हवाई जहाज़ पर चढ़ते वक्त प्रधानमंत्री ख़ास फुर्ति से चढ़ने लगते हैं। आराम से भी चढ़ सकते हैं। अब तो हर हवाई अड्डे पर ऐसी लिफ्ट आ गई है जिस पर पैदल चलते हुए आप सीधे हवाई जहाज़ में प्रवेश कर जाते हैं। मेरी समझ में नहीं आया कि भारत के प्रधानमंत्री के लिए यह सुविधा क्यों नहीं उपलब्ध है? क्या लिफ्ट से बने गलियारे से जाते हुए की तस्वीरों से सत्ता-शक्ति का कम प्रदर्शन होगा या विदेश यात्रा सामान्य सी लगने लगेगी? सुरक्षा कारणों से सीधे जहाज़ तक पहुंचने की बात समझ आती है लेकिन सुरक्षा कारणों से ही इस तरह की अलग लिफ्ट बन भी सकती है ताकि किसी को न दिखे कि प्रधानमंत्री कब आए और कब सवार हो गए।
आज के दौर में हर दिन हज़ारों हवाई जहाज़ उड़ते उतरते हैं। शक्ति प्रदर्शन के लिए प्रधानमंत्री के हवाई जहाज़ का चित्र-प्रदर्शन इतना ज़रूरी क्यों है? फिर जब प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों और राज्यों के दौरे पर जाते हैं तब ऐसी तस्वीरें देखने को नहीं मिलती है। पता ही नहीं चलता कि कैसे जहाज़ में सवार हो गए। गंतव्य पर नीचे उतरे हुए प्रधानमंत्री का राज्यपाल और मुख्यमंत्री स्वागत करते नज़र तो आते हैं लेकिन सीढ़ियां चढ़ने के बाद जहाज़ में प्रवेश करने से पहले पीछे मुड़कर हाथ हिलाने वाली तस्वीर नहीं आती है।
विदेश यात्रा से पहले की इन तस्वीरों का गहरा प्रभाव पड़ता होगा। लौट कर आने के वक्त की भी ऐसी तस्वीर होती है। अमरीकी राष्ट्रपति के जहाज़ एयरफोर्स वन पर कितनी ही डाक्यूमेंट्री बनी है। शायद उसे लेकर जो जिज्ञासा रही होगी उसके आलोक में भी दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्षों के हवाई जहाज़ दंतकथाओं का रुप लेने लगे हों। क्या अमरीकी प्रभाव में ऐसी तस्वीरें पैदा की जाने लगी हैं? तब तो तुरंत इसका प्रतिकार करना चाहिए। आखिर ये भारतीय प्रधानमंत्रियों के विदेश दौरे की अनिवार्य परंपरा कैसे बनी, क्यों चली आ रही है?
किसी को इस तरह की ऐसी तस्वीरों के इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। इन तस्वीरों से हर बार कवि क्या कहना चाहता है, पता होना चाहिए। अगर कोई देश महाशक्ति बन चुका है या है तो फिर इस तस्वीर से उसकी शक्ति में क्या ख़ास जुड़ जाता है? इन सब बातों का उत्तर मिलता तो कितना कुछ जानने को मिलता। आनंद आता।