डोनाल्ड ट्रंप 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेते हैं

मोदी जी कभी वैश्विक नेता नहीं थे, यह सिर्फ भारतीय मीडिया का बनाया हुआ हाइप था; ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण न देना इसका प्रमाण है
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  • डोनाल्ड ट्रंप का 47वें अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण समारोह

  • नरेंद्र मोदी को ट्रंप के शपथ ग्रहण में न्योता नहीं दिया गया

  • यह घटना मोदी की वैश्विक छवि के बारे में भारतीय मीडिया के दावों पर सवाल उठाती है

वाशिंगटन डी.सी. से लाइव, एक ऐसा क्षण जो अमेरिकी इतिहास के पन्नों में अंकित हो गया है - डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। यह क्षण न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है, जहां नया राष्ट्रपति अपने देश के भविष्य के लिए दिशा निर्धारित करता है। लेकिन इस नाटकीय दिन के साथ, एक और कहानी उभर कर आई है जो भारतीय पाठकों के लिए विशेष रुचि का विषय हो सकती है।

 

नरेंद्र मोदी, जिन्हें भारतीय मीडिया और कुछ राजनीतिक विश्लेषकों ने विश्व के प्रमुख नेताओं में से एक के रूप में प्रचारित किया है, इस शपथ ग्रहण समारोह में अनुपस्थित हैं। ट्रंप के शपथ ग्रहण में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भेजा गया है, जो स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि मोदी को व्यक्तिगत रूप से निमंत्रण नहीं दिया गया था। इस घटना ने भारतीय मीडिया द्वारा मोदी की वैश्विक छवि के बारे में बनाए गए हाइप पर सवाल उठाए हैं।

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भारतीय मीडिया ने अक्सर मोदी को एक वैश्विक नेता के रूप में पेश किया है, जो अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं और दुनिया भर के नेताओं के साथ मजबूत संबंध रखते हैं। लेकिन ट्रंप के शपथ ग्रहण में उनकी अनुपस्थिति इस धारणा को चुनौती देती है। यह विचार यहां से आता है कि यदि मोदी वास्तव में इतने प्रभावशाली वैश्विक नेता होते, तो उन्हें अमेरिका के सबसे प्रतिष्ठित राजनीतिक अवसरों में से एक में निमंत्रित किया जाता।

 

इस गैर-निमंत्रण के पीछे कई कारण हो सकते हैं। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह ट्रंप की विदेश नीति की एक नई दिशा को दर्शाता है, जो पिछले संबंधों की तुलना में विशेष रूप से किसी देश के साथ अधिक व्यक्तिगत रिश्ते की बजाय रणनीतिक और आर्थिक हितों पर केंद्रित हो सकती है। दूसरे शब्दों में, ट्रंप की चुनावी रणनीति में वैश्विक नेताओं की उपस्थिति कम महत्वपूर्ण हो सकती है, उनकी नीतियों पर अधिक ध्यान देने के साथ।

 

दूसरी ओर, भारतीय मीडिया का दावा है कि मोदी ने दुनिया के मंच पर भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है, जिसमें उनके विदेशी दौरे और विश्व नेताओं के साथ उनके रिश्ते शामिल हैं। हालांकि, ट्रंप के इस शपथ ग्रहण के मामले में, यह दावा संदिग्ध हो जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या भारतीय मीडिया ने मोदी की अंतर्राष्ट्रीय छवि को बहुत अधिक उड़ाया है, या शायद ट्रंप प्रशासन के पास अपने उद्देश्य हैं जो भारतीय प्रधानमंत्री को इस महत्वपूर्ण आयोजन से बाहर रखते हैं।

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इस अनुपस्थिति का एक और पहलू भारत-अमेरिका संबंधों पर पड़ने वाला प्रभाव है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह भारत के लिए एक अपमान है, जबकि अन्य इसे एक राजनीतिक संकेत मानते हैं कि ट्रंप की विदेश नीति के तहत भारत की भूमिका को देखने का एक नया तरीका हो सकता है। हालांकि, यह भी तर्क दिया जा सकता है कि मोदी की अनुपस्थिति का संबंध सीधे उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा से है या नहीं, यह एक अन्य विवादास्पद विषय है।

 

इस घटना ने निश्चित रूप से भारतीय राजनीतिक विश्लेषण और मीडिया की रिपोर्टिंग के बारे में सवाल उठाए हैं। यह हमें यह सोचने के लिए मजबूर करता है कि वास्तव में कौन सी सत्यता है - क्या मोदी एक वैश्विक नेता हैं जैसा कि भारतीय मीडिया द्वारा प्रचारित किया गया है, या यह सब एक मीडिया निर्मित हाइप है जो वैश्विक मंच पर उनकी स्थिति को अतिरंजित करता है?

 

इस सब के बीच, ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह अमेरिका के लिए एक नया अध्याय शुरू करता है, और दुनिया की नज़रें अब इस बात पर होंगी कि वह अपने दूसरे कार्यकाल में कैसे नेतृत्व करते हैं, और क्या यह भारत सहित वैश्विक रिश्तों को प्रभावित करेगा।