हरियाली से दूर हुए किसान
भारत कृषि प्रधान देश कहलाता है. यहां पर ज्यादातर लोग खेती बाड़ी करके अपना गुजर बसर करते हैं. जी हां भारत के राज्य पंजाब सदियों से ही कृषि प्रधान राज्य का गौरव पाता रहा है. यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक जलस्रोतों, उपजाऊ भूमि और स्वच्छ हवाओं के कारण जाना जाता है. पंजाब का सारा आर्थिक और सामाजिक इतिहास खेती-किसानी के चारे तरफ घूमता रहा है. आर्थिक मंदी के दौर में यहां की किसानी भी बनती-बिगड़ती रही है. ‘पगड़ी संभाल जट्टा’ ऐसे ही आर्थिक संकट से उपजी लहर थी. जहां संकटों के दौर में भी पंजाब के किसानों ने अपनी खेती को मरजीवड़ों की तरह संभाल कर रखा. ऐसे स्वभाव के पीछे श्री गुरुनानक देव जी की वह चेतना भी थी, जिसमें तमाम यात्राओं के बाद करतारपुर में उन्होंने स्वयं खेती की थी.
लेकिन आधुनिक चीजों ने इंसान को बेहद ही लालची बना दिया है. लोग अब सिर्फ पैसे के लिए ही हर काम करते हैं. इसी कड़ी में पंजाब में भी अब पिछले करीब पांच दशक से आर्थिक विकास की आंधी चली है. बदले फसल चक्र की आपाधापी में आए पैसे की हरियाली ने किसानों को दैवी हरियाली से दूर कर दिया. उन्होंने 'हरित क्रांति’ के मामूली से सट्टे में खेती-किसानी के सनातन मूल्य गंवाए और गुरु के बचन भी बिसरा दिए. पंजाब ने पिछले पांच दशकों में कीटनाशकों का इतना अधिक इस्तेमाल किया कि पूरी धरती को ही तंदूर बना डाला है.
पंजाब के 12,644 गांवों में प्रतिवर्ष 10 से 15 परिवार उजड़ रहे हैं. किताबी कृषि पढ़ाने वाले प्रोफेसरों की तनख्वाहें बढ़ती चली गईं और पंजाब के खेतों में फाके का खर-पतवार लगातार उगता चला गया. नए बीज, नई फसलें, अजीबो-गरीब खाद, कीड़े मार दवाएं, भयंकर किस्म का मशीनीकरण और आंखों में धूल झोंकने वाले प्रचार ने किसानों का भविष्य अंधेरी गुफा में झोंक दिया है. वहां ज्यादातर गांव मरने की कगार पर हैं. सेहत, शिक्षा, आवाजाही और साफ-सफाई की सुविधाएं भी मात्र शहर और कस्बा केंद्रित कर दी गई हैं.
लालच पर केंद्रित किसानी के कारण बेहद समृद्ध लोकजीवन भी छिन्न-भिन्न हो चला है. धान कभी पंजाब की फसल नहीं रही, पर पैसे के लालच और दूसरे राज्यों के लिए अधिक से अधिक चावल बेचने के मोह ने किसानी के फसल चक्र को उल्टा चला दिया है. धान का उत्पादन इतना बढ़ा कि सड़ने तक लगा. अधिक उत्पादन के कारण चोरी के नए-नए तरीके ईजाद हुए.
आधुनिकीकरण ने किसानी का स्वरुप ही बदल कर रख दिया.