हिंदी कितनी जरुरी और क्यों?

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आठवीं शताब्दी में सुदूर दक्षिण में एक महान दार्शनिक ने जन्म लिया, इस महान व्यक्तित्त्व ने तत्कालीन समाज में प्रचलित दर्शन को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय एकता के नए समीकरण का सूत्रपात किया। अद्वैत दर्शन के प्रणेता आद्य गुरु शंकराचार्य ने न केवल मानव और ब्रह्म को एकाकार बताया बल्कि यही वो चरित्र था जिसने वर्तमान भारत की भौगोलिक स्थिति का, सीमाओं को एक मूर्त रूप में निर्धारित किया और चतुर्दिश एकता के ऐसे सूत्र में भारतवर्ष को बाँधा कि कालांतर में अनेकानेक राजवंशों कि उपस्तिथि के बावजूद हिमालय के शिखरों से लेकर केरल के समुद्री तटों तक का ये क्षेत्र एक राष्ट्र स्वरुप में सदैव बना रहा जिसे 1947 में वैश्विक मानचित्र पर स्थान मिला। आज भारतवर्ष का मानचित्र कामोबेश उन्हीं सीमाओं के अंतर्गत है जहाँ शंकराचार्य कि दूरदृष्टि से स्थापित हुए चार मठ। 
                         भौगौलिकताओं में बंटा हुआ एक राष्ट्र जहाँ भूगोल के साथ संस्कृति और रीति-रिवाज़ बदल जाते हैं, पहनावे बदल जाते हैं, बोली-भाषाएं बदल जाती हैं, ऐसे राष्ट्र को एक साथ बांधकर रखना आम मानव के बस की बात तो नहीं ही है। और ऐसे महापुरुष सहस्रों वर्षों में जाकर कहीं पैदा होते हैं।  ऐसे में कुछ ऐसा तो चाहिए था जो ऐसे राष्ट्र को एक गाँठ से बांधकर रखे, एक भारतीयता के तत्व को सदैव प्रदीप्त रखे। अब इसे राष्ट्र का सौभाग्य समझें या राष्ट्र निर्माण को समर्पित महर्षियों का आशीर्वाद कि, प्राचीन संस्कृत के साथ हमारी सम्भ्यताओं ने ऐसे प्रयोग किए जो कि आम जनमानस में रच बस गए। बोलने में आसान, लिखने में सुगम और अन्य बोलियों और भाषाओ के शब्दों को स्वयं में जज़्ब करने का गुण आत्मसात किए एक महान भाषा का अविष्कार हुआ जिसे हम "हिंदी" कहते हैं। संस्कृत के अपभ्रंश स्वरुप ने अरबी, तुर्की और फ़ारसी के शब्दों को साथ मिलकर एक सरल बोलचाल की शैली और लिखने में आसान शब्दावलियों को जन्म दिया। इस तरह एक ऐसी भाषा का निर्माण हुआ जिसे आसानी सीखा भी जा सकता था और समझा भी जा सकता था, इसी भाषा ने भारत के एकत्व कि नींव रखी। वर्तमान में तो इसी हिंदी ने अंग्रेजी के साथ मिलकर एक और दिलचस्प सफल प्रयोग किया और "हिंग्लिश" का जन्म हुआ। हिंदी के शब्दों को आसानी से रोमन में लिखा जाने का प्रयोग। इस तरह अब वे लोग जिन्हें देवनागरी नहीं आती वे भी हिंदी के सन्देश रोमन लिपि में लिखकर दूसरे तक पहुंचाने में सफल रहे हैं।
                              जिस तरह शंकराचार्य ने ८वी शताब्दी भारत को एकसूत्र में पिरोया यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होफी कि हिंदी ने वही भूमिका वर्तमान भारत में निभाई है। आज़ादी के संघर्ष में भेजे जाने संदेशों और नारों की भाषा, अंग्रेजों के खिलाफ भारतीय विरोध की भाषा, भारतीयता को जागृत करते मनीषियों और लेखकों की भाषा। सुदूर दक्षिण के राज्य भी जिनकी मातृभाषा तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और मलयालम हैं के नागरिक और नेता भी हिंदी को आसानी से अपना लेते हैं। हिंदी भारत को राष्ट्र के रूप में जोड़े रखने में सहायक और कारगर रही है। जोड़ने वाला कई तोड़ने वालों से महान होता है, न्यूक्लियर फ्यूज़न से जो ऊर्जा प्राप्त होती है समस्त ब्रह्माण्ड उसी से चराचर है, सांसों के जुड़ने से ही मानव शरीर को गति प्राप्त होती है, हिंदी भी ऐसे ही जोड़ने का काम करती है समस्त भारतवर्ष को उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक। हिंदी आज भारतवर्ष की आत्मा है। भारतरत्न महामना मदनमोहन मालवीय के शब्दों में कहें तो हिंदी, हिन्दू, हिन्दुस्तान। 

हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।