59 सालों बाद खुला उत्तराखंड का ये "स्काई वॉक"

1962 भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हुआ गर्तंग-गली का ऐतिहासिक पुल फिर से खोला जा रहा है। दुर्गन चट्टानों के बीच 300 मीटर गहरी खाई के ऊपर बना यह संकरा रास्ता वर्तमान में उत्तराखंड के लिए "एडवेंचर टूरिज़्म" के लिए वरदान साबित हो सकता है। 
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Grataang Gali Track

उत्तराखंड का सीमान्त जिला है, उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिसे "बाड़ाहाट" अर्थात "बड़ा बाजार" नाम से जाना जाता था। वर्ष 1962, भारत-चीन युद्ध से पहले इस क्षेत्र से तिब्बती व्यापारी भारतीय क्षेत्र में व्यापार करते थे। अच्छा व्यापार होता था, तिब्बत के साथ। अत्यंत दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र होने के चलते व्यापारियों को दुर्गम रास्तों और दर्रों से होकर जाना होता था, इन्हीं रास्तों में से एक है "गर्तांग-गली का पुल"। उत्तरकाशी (जो की भागीरथी के किनारे बसा इस क्षेत्र का प्रमुख नगर है) से अगर आप गंगोत्री की और नेशनल हाईवे 34 पर जब आप बढ़ते हैं तो 80 किलीमीटर की दूरी पर आप पहुंचते हैं हर्षिल (जो कि सेबों के लिए मशहूर है )-धराली, यहाँ से गंगोत्री कि तरफ न जाकर आप बाएं मुड़ें तो पहुंचेंगे सीधा "नेलांग घाटी" में।  अपनी प्राकृतिक सुंदरता और लद्दाख से मिलती-जुलती स्थलाकृति के कारण इसे "उत्तराखंड का "लद्दाख" भी कहा जाता है। यहीं दो गांव हैं जिन्हें जुड़वा गांव भी कहा जाता है "नेलांग और जादुँग" सीमान्त व्यापारियों के निवास-स्थान। इन्हीं गांवों को तिब्बत से जोड़ने से के लिए बनाया गया था "गर्तांग गली पुल"। 11000  फ़ीट की ऊंचाई पर 136  मीटर लम्बा व 1.6  मीटर चौड़ा लकड़ी का यह पुल अत्यंत दुर्गम सीधी खड़ी चट्टानों को काट कर नदी से 300 मीटर ऊपर इंजीनियरिंग का नायाब  नमूना है। कहा जाता है 17वीं शताब्दी में  व्यापारियों के अनुरोध पर जादुँग गाँव के एक सेठ ने इसे बनाने के लिए पेशावर से पठान कारीगरों को बुलाया था। चट्टानों को काटकर उसपर लोहे कि प्लेटें और उनके ऊपर लकड़ी कि सीढ़ियों से इसे बनाया गया है। एक व्यापारिक मार्ग होने के चलते यह भारत और तिब्बत के सीमान्त लोगों के लिए यह अत्यंत मत्वपूर्ण था। इन सीमान्त क्षेत्रों में तिब्बती "शौका" व्यापारी जो कि भारत-तिब्बत व्यापार पर ही निर्भर थे वे रहते थे। भारत के सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले "भोटिया" समुदाय के लोग भी इसी व्यापार पर निर्भर थे। वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद ये व्यापारिक मार्ग बंद हो गए और साथ ही ये क्षेत्र भी कहीं गुमनामी में चला गया। हालांकि कुछ समय तक इस "पुल" का प्रयोग सेना ने किया, लेकिन धीरे-धीरे यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पहुँच गया और इतिहास में दफन हो गया। अब उत्तराखंड सरकार के लोक निर्माण विभाग ने 65 लाख रु० कि लागत से इस पुल का जीर्णोद्धार किया है। और इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। 300 मीटर नीचे तीव्र गति से बहती नदी, तेज़ पहाड़ी हवाओं के बीच, सीधी-खड़ी चट्टानों पर बना संकरा लकड़ी का रास्ता "एडवेंचर टूरिज्म" के लिए इससे शानदार कौन सी जगह हो सकती है।  एडवेंचर टूरिज्म के शौकीनों के लिए ये किसी शानदार "स्काई-वॉक" से कम नहीं होगा।