क्या है डेल्टा प्लस वैरिएंट, क्या भारत में आएगी कोरोना की तीसरी लहर?

 | 

वायरस बहुत जल्दी और तेज़ी के साथ अपने DNA में बदलाव करने के लिए जाना जाता है, अर्थात वायरस चाहे कोई भी हो कैसा भी हो वो अपना स्वरुप अपनी सुविधानुसार तेज़ी से बदल सकता है। और ऐसे बदलाव अगर किसी नए और मनुष्यों में बीमारी पैदा करने वाले वायरस में हो जाये तो उसका मानव जीवन के लिए खतरा बनना लाज़मी है। ऐसे ही कुछ बदलाव हुए हैं वर्तमान दुनिया के लिए खतरा बने हुए कोरोना वायरस यानी कोविड-19 के वायरस में।  कहने का मतलब यह है की जिस कोविड 19 के वायरस को हम अब तक पहचानते थे अब वो बदल चुका है, और ऐसे में वायरस को पहचानना मुश्किल हो जाता है।  किसी व्यक्ति में संक्रमण का पता लगाना कठिन हो जाता है,और ऐसे में यह वायरस दुनियभर के लिए समस्या खड़ी कर सकता है।
                                   वायरस की पहचान के लिए वैज्ञानिक उसके विशिष्ट लक्षणों के आधार पर कूट भाषा का प्रयोग करके उसका नामकरण करते हैं, जैसे कोविड-19 वायरस अर्थात कोरोना वायरस का वह वैरिएंट जो 2019 में पाया गया। कोरोना वायरस तो बहुत सारे पहले से ही हमारे आस पास थे लेकिन 2019 में मिले कोरोना वैरिएंट में कुछ ऐसे बदलाव थे कि वह मनुष्यों के लिए इतना घातक साबित हुआ।  इसके मनुष्यों को संक्रमित करने और संक्रमण के चलते तेज़ी से मौतों के बढ़ते आंकड़ों के कारण इसे वैश्विक महामारी घोषित किया गया और वैक्सीन बनाने के काम में तेज़ी लाई गई। 2020 के अंत तक हमें वैक्सीन मिल भी गयी लेकिन वायरस के मुष्यों में फैलते संक्रमण के चलते अलग अलग क्षेत्रों में पहुंचने के कारण वायरस ने भी अपना स्वरुप बदलना शुरू किया और अलग अलग देशों या अलग अलग भौगोलिक क्षेत्रों में कोविड 19  वायरस के अलग अलग वैरिएंट सामने आने लगे। WHO  के अनुसार दुनिया  भर में इस समय 200 से ज्यादा वैरिएंट हो सकते हैं जो कि मुष्यों के लिए घातक साबित हो सकते हैं। वायरस का स्वरुप बदलना वर्तमान में प्रयोग की जा रही वैक्सीन के प्रभाव को कम या उसे पूरी तरह निष्प्रभावी भी कर सकता है।
                                  ऐसे ही कई वैरिएंट में से एक डेल्टा वेरिएंट या बी.1.617.2 को भारत में भी पाया गया और अप्रैल-मई के महीने में मची अफरातफरी के लिए इसे ही जिम्मेदार समझा गया। इसे पहले भारत में पहचाना गया और बाद में AY.1 और AY.2 के रूप में कोड किया गया। वर्तमान में यह 100  से ज्यादा देशों में सक्रिय है। इसी डेल्टा वैरिएंट में फिर से एक परिवर्तन या बदलाव जिसे कि वैज्ञानिक म्युटेशन कहते हैं, के चलते यही डेल्टा वैरिएंट अब "डेल्टा प्लस" बन गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि डेल्टा प्लस वैरिएंट पहले से जयादा घातक साबित हो सकता है और  सरकार  ने भी इसे "चिंता का कारण" घोषित कर दिया है।
                         हालांकि डेल्टा प्लस वैरिएंट के बारे में अभी तक पूरे आँकड़ें उपलब्ध नहीं हैं अतः पहले से कयास लगाना हालाँकि सही नहीं होगा ये कहना है एम्स प्रमुख रणवीर गुलेरिया का। कोविड नियमों का सम्पूर्ण रूप से पालन हमें इस संक्रमण से भी सुरक्षित रखेगा और साथ ही साथ वैक्सीन लगवाना भी।  अभी तक प्राप्त रिसर्च के अनुसार कोविशिल्ड वैक्सीन 70% तक डेल्टा प्लस वैरिएंट के खिलाफ भी प्रभावी है। 
कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि वैक्सीन लगवाना और कोविड नयमो का पूर्ण पालन हमें सुरक्षित रखेगा और नियमों का उल्लघन कभी भी तीसरी लहर का कारण बन सकता है। 

कोविड नियमो का पालन करें, वैक्सीन लगवाएं।  तीसरी लहर रोकने में मदद करें।