बेटियों को समर्पित उत्तराखंड का एक लोकपर्व। 

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Bhagwati Nanda

भाद्रपद महीना अंग्रेजी के जूलियन कैलेंडर का आधा अगस्त और आधा सितम्बर। इसी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी उत्तराखंड में नंदा अष्टमी के रूप में मनाई जाती है। नंदा जो इस पहाड़ी राज्य की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। जिनका गढ़वाल और कुमाऊँ दोनों क्षेत्रों में समान अधिकार है।  नंदा जिनके नाम से हर 12 साल में होती है गढ़वाल में विश्व की सबसे बड़ी पैदल धार्मिक यात्रा। इन्ही माँ नंदा को याद कर भाद्रपद के महीने में इन पहाड़ों पर यह त्यौहार मनाया जाता है, कहीं पर यह षष्ठी, और सप्तमी को मनाया जाता है लेकिन ज्यादातर जगहों पर इसे अष्टमी को ही मनाया जाता है। ये एक त्रिदिवसीय पर्व है, जिसमें नंदा को अपनी बेटी के रूप में मान कर ग्रामीण उन्हें ससुराल से मायके बुलाते हैं स्वागत सत्कार करते हैं, और फिर सावन के महीने में उगाए हुए फलों, सब्जियों और चावल से बने चूड़े के रूप में "समौण" देकर नम आँखों से विदा करते हैं।

त्यौहार के पहले दिन गांव के 5 या 7 लोग नंदा को बुलाने के लिए जाते हैं, इहें "फुलारी" अर्थात फूल लाने वाला कहा जाता है, दरअसल उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मिलने वाले ब्रह्म कमल को माँ नंदा का प्रतीक मन जाता है। अतः ये फुलारी उच्च शिखरों तक ब्रह्म कमल लेने जाते हैं। नंदा का विवाह भगवान शिव से हुआ था ऐसा माना जाता है, इस तरह इन इलाकों के लोग नंदा को अपनी बेटी मानते हैं, इन क्षेत्रों में बेटी को भाद्रपद के महीने में मायके बुलाने का रिवाज़ है। संस्कृति के इसी पहलू को इस पर्व के माध्यम से जीवित रखे हुए हैं यहाँ के ग्रामीण। ब्रह्म कमल ले आने के उपरान्त, दूसरे दिन माँ नंदा की मूर्ति की स्थापना होती है, रात भर जागरण होता है और गांव की महिलाएं पूरी रात नंदा के "जागर" (माँ नंदा से जुडी हुई कहानियों के गीत रूप) गाती हैं और नाचती हैं। ये एक तरह से बेटी के वर्ष भर बाद मायके आने की ख़ुशी होती है।

तीसरे दिन सारे ग्रामीण तरह-तरह की वस्तुएं फल, सब्जियां, और अन्य उपहार देकर देवी नंदा को विदा करते हैं, जैसे अपनी बेटी को ससुराल भेज रहे हों। देवी नंदा को विदा करने ले लिए ये लोग उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक जाते हैं और कुल मिलकर यह यात्रा 100 किलोमीटर तक लम्बी होती है। इन पहाड़ी क्षेत्रों के लोग देवी नंदा को अपनी बेटी मानते हैं और वर्ष में एक बार बेटी को मायके बुलाकर विदा करने का यह पर्व सम्पूर्ण रूप से बेटियों को समर्पित है।  विवाहित बेटियों को यहां लोग "धियाण" अर्थात अपने हृदय के सबसे पास सर्वाधिक अनमोल मानते हैं। और नंदा पूरे गढ़वाल-कुमाऊँ की "धियाण" हैं।