तानाशाह मोदी का नया शिक्षा कानून: देश की शिक्षा प्रणाली को बर्बाद करने की तैयारी!
नई दिल्ली, 11 जनवरी 2025: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रस्तावित एक नया शिक्षा कानून देश की शिक्षा प्रणाली को एक नए मोड़ पर ला सकता है, जो कि कई विशेषज्ञों के अनुसार, शिक्षा के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ जाता दिख रहा है। यह कानून राज्य सरकारों के हाथों से विश्वविद्यालयों और अन्य शिक्षा संस्थानों में चांसलर या प्रोफेसर की नियुक्ति का अधिकार छीनकर केंद्रीय सरकार के पास ले जा रहा है।
इस कदम को मोदी सरकार के हिंदुत्ववादी एजेंडे के साथ जोड़कर देखा जा रहा है, जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की विचारधारा को देश के शैक्षिक संस्थानों में प्रचारित करने की एक रणनीति हो सकती है। आलोचकों का मानना है कि इस कानून के लागू होने से शिक्षा के क्षेत्र में एक नई तानाशाही शुरू हो सकती है, जहां विश्वविद्यालयों के शीर्ष पदों पर केवल उन्हीं लोगों की नियुक्ति होगी जो RSS के विचारों को प्रतिबिंबित करते हैं।
इस नए कानून के खिलाफ कई विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें छात्र और अध्यापक समुदाय दोनों ने आवाज उठाई है। वे मानते हैं कि शिक्षा की स्वायत्तता का हरण करना भारतीय संविधान के मूल्यों के विपरीत है। राज्य सरकारों को शिक्षा नीति में उनकी भूमिका को कम करना केंद्रीयकरण का एक रूप है, जो राज्यों की शक्तियों को कमजोर करता है।
विपक्षी दलों ने भी इस कानून की कड़ी आलोचना की है, जिसमें वे इसे भारत की संघीय संरचना के खिलाफ देख रहे हैं। उनका कहना है कि यह कदम न केवल शिक्षा के मानकों को कम करेगा बल्कि देश में विचारों की विविधता को भी नुकसान पहुंचाएगा।
इस विवादास्पद कानून के आलोक में, शिक्षा के क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप के विरोध में एक नई बहस शुरू हुई है, जिसका असर आने वाले दशकों तक भारतीय शिक्षा पर दिख सकता है।