कश्मीरी शादियों का "वाजवान"

कश्मीर! एक ऐसा ऐसी जगह, एक ऐसा नाम जिसे देखने जानने के बाद बरबस ही मुंह से निकल पड़ता है, वाह कश्मीर! "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" ऐसा कहा था जहांगीर ने इस जमीं के लिए, दुनिआ का स्वर्ग कहा गया है कश्मीर को। चिनार के खूबसूरत पेड़ो से ढकी ये घाटी ऐसा दिलकश नज़ारा पेश करती है की देखने वाला खुद ही ग़ज़ल गाने लगे, तस्वीर बनाने लगे।
जितना खूबसूरत कश्मीर को कुदरत ने सजाया है उससे भी खूबसूरत है यहाँ के रीति-रिवाज़। जितना आलीशान है कश्मीर उतने ही आलिशान हैं कश्मीर के लोग और उससे भी आलीशान हैं उनके खाने के ज़ायके। सूखे-मेवों और दिल की तह तक असर करने वाले मसाले से बने कहवे से से लेकर, कश्मीरी रोगन-ज़ोश, केसर, श्ताबा, रिस्ता, तबक माज, कबरगाह और विश्वप्रसिद्ध कश्मीरी वाज़वान तक, इस खूबसूरत जगह पर आपको ऐसे-ऐसे दिलकश पकवान मिलेंगे की उँगलियाँ चाटते रह जायेंगे आप, पेट शायद भर भी मगर मन का क्या, इन पकवानो से मन नहीं भरता भाई, मन। पतझड़ का मौसम आते ही कश्मीर की रंगीनियां अपने शबाब पर होती हैं, और अलग-अलग इलाकों में शादियों की तैयारियां अपने उरोज़ पर। जितना भव्य ईश्वर ने कश्मीर को बनाया है, जितना शानदार और स्वर्ग जैसा उतनी ही अतुलनीय, अद्वितीय होती है कश्मीरी शादियां 3 दिन के इस खास मौके को कश्मीरी किसी भी त्यौहार से बढ़कर मानते हैं। मेहमानो की ऐसी नवाज़िश कि एक बार को देवता भी ललचा जाएं, सचमुच पतझड़ के दिनों के शादियों वाले माहौल में कश्मीर कि असल शख्सियत उभर कर आती है, और फिर समझ आता है कि, "गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त/ हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त"।
इन्हीं कश्मीरी शादियों का एक खास और जरुरी हिस्सा है "वाज़वान"। वाज़वान जिसने भी देखा है, खाया है, उसको तो पक्का ही मुंह में पानी आ जाए सुनते ही। वाज़वान 36 पकवानो का एक ऐसा खाना है जिसमे मुख्यतः माँसाहारी व्यंजन होते हैं। कश्मीरी शादियों कि शान है वाज़वान। मेहँदी रात से लेकर वलीमे कि बड़ी दावत तक वाज़वान कि धूम रहती है कश्मीरी शादियों में। एक तरह का शाही भोजन है वाज़वान। मन जाता है कि ये वाज़वान 15वीं शताब्दी में कश्मीर में आया समरकंद से आने वाले खानसामाओं के साथ, इन्हीं खानसामों के वंशज आगे चलकर "वाज़" कहे जाने लगे और उनके द्वारा बनाई जाने वाला यह विशेष भोजन कहलाया "वाज़वान"। वाज़वान अपने अलग लाग किस्म के मांसाहारी व्यंजनों के लिए तो जान ही जाता है पर इसमें सबसे ख़ास होती है अलग-अलग तरह कि "तरी" हाँ जी जिसे "ग्रेवी" कहते हैं आप सब। कश्मीरी वाज़वान में ये तरी काफी गाढ़ी होती है, वाज़वान के हर व्यंजन में शामिल तरी में दही मिलाया जाता है, और इसी दही के चलते ये तरी गाढ़ी होती है। दही के साथ इसमें मिलाये जाते हैं तरह के मसाले, और सबसे जरुरी सूखे कश्मीरी मेवे कहीं पूरे-पूरे तो कहीं-कहीं मेवों कि कतरने। खुशबू के लिए हींग का खूब इस्तेमाल किया जाता है और ज़ायके लिए सौंफ, इलायची, लौंग, केसर और सूखी अदरक भी इस्तेमाल कि जाती है। अखरोट, बादाम, काजू और किसमिश से मिलकर बनी तरी कंस इ काम दो आंच पर पकाई जाती है। एक बड़े से लक्कड़ को बीच से काटकर उसमें अलग-अलग देखचिंयों को रखने का इंतज़ाम किया जाता है और इस तरह तैयार होता है गरमागरम ज़ायक़ेदार दुनियाभर में मशहूर कश्मीरी वाज़वान।