सख्ती की मिसाल: पिता की शराब, घर की गरीबी, स्कूल छूटा पर हार नहीं मानी, 19 साल में बनी 7 गांवों की सरपंच!

शिक्षा की अलख जगाने वाली राजस्थान की बेटी प्रवीणा की प्रेरणादायक कहानी

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  • पिता की शराब की लत, गरीबी और बाल विवाह के खतरे से लड़ीं जंग
  • शिक्षा का महत्व समझा और खुद सरपंच बनकर लड़कियों की पढ़ाई की जगी उम्मीद
  • स्कूल बनवाया, शिक्षा के लिए बजट बढ़ाया, अब दूसरे गांवों में चलाती हैं जागरूकता अभियान

राजस्थान के पाली जिले के सकदरा गांव की रहने वाली प्रवीणा की जिंदगी किसी जंग का मैदान रही है। बचपन में ही पिता को खोना, घर की बदहाली, तीसरी कक्षा के बाद स्कूल छूटना और कम उम्र में शादी का डर - ऐसे लगता था मानो भाग्य ने हर मोड़ पर चुनौती ही रखी हो। लेकिन आज 25 साल की प्रवीणा सिर्फ अपनी नहीं बल्कि कई लड़कियों की जिंदगी में उम्मीद की किरण बनकर चमक रही हैं।

प्रवीणा, जिन्हें गांव वाले प्यार से "पापीता" कहते हैं, ने बड़ी मुश्किलों से अपना रास्ता बनाया है। स्कूल छोड़ने के बाद उन्हें दूसरे लोगों के मवेश चराने पड़े, साथ ही घर के सारे काम भी संभालने थे। लेकिन ये हालात ज़्यादा दिन नहीं टिक सके। उनके जीवन में बदलाव का दौर तब आया जब 40 किलोमीटर दूर पाली गांव में लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय "कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय" (केजीबीवी) खुला। एक एनजीओ "एजुकेट गर्ल्स" के कार्यकर्ता ने उनके परिवार को समझा-बुझाकर पापीता को स्कूल भेजने के लिए राजी कर लिया। स्कूल ने सिर्फ उनकी शिक्षा को आगे नहीं बढ़ाया बल्कि लड़कियों की शिक्षा के महत्व को भी उनके मन में गहरा बिठाया।

स्कूल पूरा करने के बाद 18 साल की उम्र में प्रवीणा की शादी एक निर्माण श्रमिक से हुई। वो अपने ससुराल की सबसे पढ़ी-लिखी महिला थीं, जिसने उन्हें सरपंच का चुनाव लड़ने का हौसला दिया। "मैंने चुनाव लड़ा और एक बार सरपंच बनने के बाद मैंने ये सुनिश्चित किया कि शिक्षा के लिए अधिकतम बजट आवंटित हो।" पापीता कहती हैं, "अगर मेरी शिक्षा नहीं होती तो मैं शायद आज भी मवेश चरा रही होती और घर के काम कर रही होती।" सरपंच के रूप में उन्होंने 2014 से 2019 तक राजस्थान के सात गांवों - रूपवास, केरला, मुलियावास, राउणागर, सेवरा की ढाणी, मूला जी की ढाणी और नारू जी की ढाणी की सेवा की।

शिक्षा ही उनका सबसे बड़ा हथियार रहा। वो बताती हैं, "मैंने इस दौरान गांवों में स्कूल बनवाया, परिवारों को लड़कियों को स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित किया।" सरपंच का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी प्रवीणा का शिक्षा के लिए जुनून कम नहीं हुआ। वो आज भी अलग-अलग गांवों में जाकर पता करती हैं कि क्या कोई लड़की स्कूल नहीं जा रही है। जरूरत पड़ने पर वो एनजीओ से भी संपर्क कराती हैं, ताकि कोई भी आर्थिक कारण से शिक्षा से वंचित न रहे।

स्कूल के शिक्षक भी उन्हें बतौर उदाहरण लड़कियों को संबोधित करने के लिए बुलाते हैं। पापीटा का मानना है कि भले ही लड़कियां आगे उच्च शिक्षा न लें पर कम से कम स्कूल ज़रूर आएं