क्यों पढ़ें अमीश की लिखी "सुहेलदेव"?
Sep 6, 2021, 09:14 IST
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राजा यशोवर्मन, खारवेल, भीम सोलंकी, वीरपांड्य कट्टबोमन्न, रानी अवक्का, लाचित बोरफुकन इनमें से कितने नाम आपने सुने हैं? शायद कुछ सुने होंगे और कुछ ही लोगों ने सुने होंगे उसमें भी कइयों ने बस नाम ही सुने होंगे ऐसे अपन राष्ट्र के इन नायकों जानने वाले लोगों को आप उँगलियों पर गिन सकते हैं। ये सारे नाम मध्यकालीन भारत के वे नाम हैं जिनके रहने से ही इक़बाल लिख पाए "यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से, कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी"। भारतीय सभ्यता और संस्कृति अगर आज भी अपने 5000 साल से अधिक के प्रचीनत्व को लिए हुए अनवरत जीवित ही नहीं रही बल्कि पुष्पित-पल्लवित ही हुई है, तो इसे जीवित बनाए रखने के लिए ऊपर लिखे इन्हीं महान नामों का योगदान है, और ये तो चंद नाम हैं इसके अलावा भी कई ऐसे नायक इतिहास में हुए हैं, जिनसे हम भारतीयों को कभी परिचित ही नहीं करवाया गया, ये भारतीय इतिहास के वो नाम हैं जिनकी थाती के रहते ही 1891 के शिकागो "धर्म-सम्मलेन" में स्वामी विवेकानंद संसार को भारतीयत्व से परिचित करवा पाए। मगर अफ़सोस यह कि इनमे से किसी एक को भी हमारे अकादमिक इतिहास में वह स्थान नहीं मिला जो इन्हें मिलना चाहिए। दोष केवल अकादमिक संस्थाओं का नहीं है, एक भारतीय समाज के तौर पर भारतीयों का भी है जिसने अपने नायकों को भुला दिया।
इसी क्रम में एक और नाम है, एक महान नाम "सुहेलदेव", श्रावस्ती का सुहेलदेव। और इस नाम से तो इस लेख कि शुरुआत में लिखे नामों को जानने वाले भी कदाचित ही परिचित हों। मैंने भी इस नाम को लेखक और चिंतक अमीश के एक साक्षात्कार में ही सुना और अब जाकर उनकी इसी नाम से लिखी पुस्तक को पढ़ने पर इस महान व्यक्तित्व को तनिक जान पाया हूँ। अगर भारत के अकादमिक इतिहास को देखा जाए तो 1026 ईस्वी के सोमनाथ पर हुए महमूद ग़ज़नी के हमले के बाद आप सीधा 1191 के मुहम्मद गौरी के आक्रमण को पढ़ते हैं। तराइन की उसकी हार और फिर 1193 में उसकी पृथ्वीराज चौहान पर जीत से भारत में सल्तनत काल प्रारम्भ के बाद ही भारतीय अकादमिक इतिहास शुरू होता है। 1026 से लेकर 1193 के बीच के कालखंड में क्यों नहीं हुआ अन्य कोई आक्रमण? ये कोई छोटा कालखंड तो है नहीं कि यूँ ही छोड़ दिया जाय, महमूद गजनी के 1026 के आक्रमण को सफल लिखने के बाद भारतीय अकादमिक इतिहास में इसके बाद के कालखंड का वर्णन क्यों नहीं मिलता, कौन शासक थे, सामाजिक संरचना क्या थी, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि 1026 के आक्रमण में सफलता मिलने के पश्चात भी क्यों अगले 150 से भी अधिक वर्षों तक अन्य कोई आक्रमण नहीं हुआ? ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर अपनी पुस्तक "सुहेलदेव" में लेकर आए हैं लेखक अमीश।
पुस्तक मुख्यतः अंग्रेजी भाषा में है और इसका हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है, शीर्षक है "सुहेलदेव: द किंग हू सेव्ड इंडिया" हिंदी में "भारत का रक्षक: सुहेलदेव"। श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव कि यह कहानी कदाचित अपने सम्पूर्ण रूप में पहली बार भारतीयों के सामने आयी है। एक दलित समाज के राजा ने किस तरह से अपने आस-पास के अन्य शासकों को साथ लेकर भारत पर हो रहे शृंखलाबद्ध तुर्की आक्रमणों का प्रतिउत्तर दिया और सामना किया। पुस्तक प्रारम्भ होती है सोमनाथ के मंदिर की रक्षा करते हुए बलिदान देते सुहेलदेव के बड़े भाई मल्लदेव के बलिदान के साथ तत्पश्चात शुरू होता है तुर्कों का सामना करते और उनको यत्र-तत्र नुकसान पहुंचाते गुरिल्ला पद्धति से छापामार युद्धों का अंतहीन सिलसिला जो तुर्क और सुहेलदेव के नेतृत्व में संयुक्त भारतीय सेना के मध्य बहराइच के युद्ध के रूप में परिणति को प्राप्त होता है। संयुक्त भारतीय सेना की यह जीत ही सुनिचित करती है कि तुर्क आने वाले 150 से भी अधिक वर्षों तक भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सके।
बहराइच और श्रावस्ती के अस्स-पास के गांवों में प्रचलित इस ऐतिहासिक गल्प को एक छोटे ऐतिहासिक उपन्यास का रूप दिया है अमीश ने, यह पुस्तक इसलिए पढी जानी चाहिए कि 1026 और 1191 के बीच भी भारतीय इतिहास है जो कि हमारे अकादमिक इतिहास का भाग है ही नहीं। अतः समय निकालकर इस पुस्तक को पढ़ें अपने इतिहास के एक और महान नायक को जानने के लिए।
इसी क्रम में एक और नाम है, एक महान नाम "सुहेलदेव", श्रावस्ती का सुहेलदेव। और इस नाम से तो इस लेख कि शुरुआत में लिखे नामों को जानने वाले भी कदाचित ही परिचित हों। मैंने भी इस नाम को लेखक और चिंतक अमीश के एक साक्षात्कार में ही सुना और अब जाकर उनकी इसी नाम से लिखी पुस्तक को पढ़ने पर इस महान व्यक्तित्व को तनिक जान पाया हूँ। अगर भारत के अकादमिक इतिहास को देखा जाए तो 1026 ईस्वी के सोमनाथ पर हुए महमूद ग़ज़नी के हमले के बाद आप सीधा 1191 के मुहम्मद गौरी के आक्रमण को पढ़ते हैं। तराइन की उसकी हार और फिर 1193 में उसकी पृथ्वीराज चौहान पर जीत से भारत में सल्तनत काल प्रारम्भ के बाद ही भारतीय अकादमिक इतिहास शुरू होता है। 1026 से लेकर 1193 के बीच के कालखंड में क्यों नहीं हुआ अन्य कोई आक्रमण? ये कोई छोटा कालखंड तो है नहीं कि यूँ ही छोड़ दिया जाय, महमूद गजनी के 1026 के आक्रमण को सफल लिखने के बाद भारतीय अकादमिक इतिहास में इसके बाद के कालखंड का वर्णन क्यों नहीं मिलता, कौन शासक थे, सामाजिक संरचना क्या थी, और सबसे महत्वपूर्ण यह कि 1026 के आक्रमण में सफलता मिलने के पश्चात भी क्यों अगले 150 से भी अधिक वर्षों तक अन्य कोई आक्रमण नहीं हुआ? ऐसे ही प्रश्नों का उत्तर अपनी पुस्तक "सुहेलदेव" में लेकर आए हैं लेखक अमीश।
पुस्तक मुख्यतः अंग्रेजी भाषा में है और इसका हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है, शीर्षक है "सुहेलदेव: द किंग हू सेव्ड इंडिया" हिंदी में "भारत का रक्षक: सुहेलदेव"। श्रावस्ती के राजा सुहेलदेव कि यह कहानी कदाचित अपने सम्पूर्ण रूप में पहली बार भारतीयों के सामने आयी है। एक दलित समाज के राजा ने किस तरह से अपने आस-पास के अन्य शासकों को साथ लेकर भारत पर हो रहे शृंखलाबद्ध तुर्की आक्रमणों का प्रतिउत्तर दिया और सामना किया। पुस्तक प्रारम्भ होती है सोमनाथ के मंदिर की रक्षा करते हुए बलिदान देते सुहेलदेव के बड़े भाई मल्लदेव के बलिदान के साथ तत्पश्चात शुरू होता है तुर्कों का सामना करते और उनको यत्र-तत्र नुकसान पहुंचाते गुरिल्ला पद्धति से छापामार युद्धों का अंतहीन सिलसिला जो तुर्क और सुहेलदेव के नेतृत्व में संयुक्त भारतीय सेना के मध्य बहराइच के युद्ध के रूप में परिणति को प्राप्त होता है। संयुक्त भारतीय सेना की यह जीत ही सुनिचित करती है कि तुर्क आने वाले 150 से भी अधिक वर्षों तक भारत पर आक्रमण करने का साहस नहीं कर सके।
बहराइच और श्रावस्ती के अस्स-पास के गांवों में प्रचलित इस ऐतिहासिक गल्प को एक छोटे ऐतिहासिक उपन्यास का रूप दिया है अमीश ने, यह पुस्तक इसलिए पढी जानी चाहिए कि 1026 और 1191 के बीच भी भारतीय इतिहास है जो कि हमारे अकादमिक इतिहास का भाग है ही नहीं। अतः समय निकालकर इस पुस्तक को पढ़ें अपने इतिहास के एक और महान नायक को जानने के लिए।