चुनाव आयोग ने नियमों में संशोधन कर चुनावी प्रक्रिया को किया और अधिक अपारदर्शी, क्यों?
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हाल ही में हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को चुनाव से जुड़े दस्तावेज उपलब्ध कराने का आदेश दिया।
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नए संशोधन के साथ, जनता के लिए सभी चुनावी दस्तावेज नहीं होंगे उपलब्ध।
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विपक्ष ने इस बदलाव को चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर हमला बताया।
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कांग्रेस ने नियम परिवर्तन को कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की।
हाल ही में, भारत सरकार ने एक विवादास्पद निर्णय लिया है जिसके तहत चुनाव आयोग ने चुनाव संचालन नियमों में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया है। यह संशोधन जनता की चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता की मांग को कमजोर करने के रूप में देखा जा रहा है। संशोधन के पीछे का कारण है हाईकोर्ट का एक आदेश, जिसमें चुनाव आयोग को हरियाणा विधानसभा चुनावों से संबंधित दस्तावेज वकील महमूद प्राचा को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया था।
इस नियम संशोधन के साथ, 1961 के चुनाव संचालन नियमों के नियम 93(2)(a) में बदलाव किया गया है। पहले यह नियम कहता था कि "चुनाव से संबंधित सभी कागजात जनता की जांच के लिए उपलब्ध होंगे।" लेकिन अब नियम में जोड़ा गया है कि "इन नियमों में विशेष रूप से उल्लिखित कागजात जनता की जांच के लिए उपलब्ध होंगे," जिसका अर्थ है कि सभी चुनाव संबंधी कागजात जनता के लिए नहीं होंगे।
कांग्रेस ने इस परिवर्तन को चुनावी प्रक्रिया की अखंडता को कमजोर करने के रूप में चिह्नित किया है। पार्टी के नेता जयराम रमेश ने इसे "चुनावी प्रक्रिया की तेजी से क्षय होती अखंडता का सबूत" कहा है। उन्होंने कहा कि पारदर्शिता सबसे अच्छा निरोधक है और जानकारी से लोगों का विश्वास बहाल होता है, जिसे हाईकोर्ट ने भी माना था। हालांकि, चुनाव आयोग ने इस निर्णय के बजाय नियमों में बदलाव करके जनता को जानकारी से वंचित करने की कोशिश की है।
कांग्रेस ने इस नियम परिवर्तन को कानूनी रूप से चुनौती देने का वादा किया है, जबकि विपक्षी दलों ने इसे चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता के लिए एक खतरा बताया है। इसके अलावा, सोशल मीडिया पर, कई लोगों ने सवाल उठाए हैं कि चुनाव आयोग क्यों पारदर्शिता से डर रहा है।
इस संशोधन के माध्यम से, सरकार ने वास्तव में जनता की जानकारी के अधिकार पर एक नया प्रतिबंध लगाया है, जो चुनावी प्रक्रिया में विश्वास को कम कर सकता है। यह कदम विशेष रूप से उस समय आया है जब ईवीएम की विश्वसनीयता और चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पहले से ही सवालों के घेरे में है।