Chandrayan 3 vs Luna 25: एक को 40 दिन तो एक को 10 दिन लगेगा चांद पर पहुंचने में, वजह क्या है ?

लूना-25 को एक हाई-पावर रॉकेट आगे बढ़ाता है वहीं चंद्रयान-3 आगे बढ़ने के लिए चांद और धरती के गुरुत्वाकर्षण बल का प्रयोग करता है. भारत और रूस दोनों के मिशन का मकसद चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड करना है. चांद की रेस में लूना-25 खरगोश की रफ्तार से बढ़ रहा है. भले ही दोनों मून मिशन का लक्ष्य काफी हद तक एक जैसा हो मगर लूना-25 और चंद्रयान-3 में काफी अंतर है.
लूना-25 में हाई-पावर रॉकेट लगा है जो ज्यादा ईंधन ले जा सकता है. रूस ने इसमें सोयुज 2.1 रॉकेट लगाया है. ये 46.3 मीटर लंबा है. 10.3 मीटर व्यास वाले इस रॉकेट का वजन 313 टन है. चार चरणों के इस रॉकेट ने ‘लूना-25’ लैंडर को धरती के बाहर एक गोलाकार कक्ष में छोड़ दिया. यह इसे चांद की सतह तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त ताकत देता है. सोयुज रॉकेट की वजह से लूना-25 को धरती की कक्षा में इंतजार नहीं करना पड़ा.
भारत का चंद्रयान-3 ग्रेविटेशनल फोर्सेज पर ज्यादा निर्भर है. लॉन्च के बाद इसे धरती की दीर्घ वृत्ताकार कक्षा में स्थापित किया गया. यह उसी रास्ते पर चक्कर काटता रहा जब तक इसरो के वैज्ञानिकों ने कुछ मैनूवर्स के जरिए चंद्रयान-3 का ऑर्बिट नहीं बढ़ाया. धीरे-धीरे चंद्रयान-3 को धरती से दूर धकेला गया और फिर इसे चांद की कक्षा की ओर गाइड किया गया. चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद ठीक उसी तरह अब धीरे-धीरे चंद्रयान-3 को चांद की ओर धकेला जा रहा है. भारत ने पहले के चंद्रमा मिशनों- चंद्रयान 1 (2008) और चंद्रयान-2 (2019) में भी यही तरीका अपनाया था.