पर्यावरणविद बहुगुणा के निधन पर देश में शोक, पीएम मोदी समेत दिग्गजों ने जताया दुख

विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा पिछले कई वर्षों से हिमालय में वनों के संरक्षण के लिए काम कर रहे थे। उनके निधन से पर्यावरण क्षेत्रों से जुड़े लोगों को गहरा आघात पहुंचा है। पर्यावरणविद बहुगुणा पिछले दिनों कोरोना से पीड़ित थे। जिसके बाद उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती करवाया गया था। वहां उनका इलाज चल रहा था, लेकिन शुक्रवार की दोपहर 12:00 बजे 95 वर्षीय बहुगुणा ने अस्पताल में आखिरी सांस ली।
हिमालय के रक्षक कहे जाने वाले बहुगुणा महात्मा गांधी के पक्के अनुयाई थे और उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा करना था। 9 जनवरी 1927 में उत्तराखंड के टिहरी जिले के मरोड़ा में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा ने 13 वर्ष की उम्र में सामाजिक कार्य शुरू कर दिए थे। उन्होंने 1970 में पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक आंदोलन शुरू किया, चिपको आंदोलन उसी का हिस्सा था। चिपको आंदोलन से बहुगुणा को पहचान मिली और इस आंदोलन में महिलाओं ने सुंदरलाल बहुगुणा को भरपूर समर्थन दिया और इसे पूरे उत्तराखंड में फैलाया।
बहुगुणा ने टिहरी बांध निर्माण का भी बढ़-चढ़कर विरोध किया और 84 दिन लंबा अनशन भी रखा। भारत सरकार ने 1981 में उन्हें पदम श्री पुरस्कार दिया। लेकिन उन्होंने इसे यह कहकर लौटा दिया कि पेड़ों की कटाई जारी रहने तक वह ख़ुद को पुरस्कार के योग्य नहीं समझते। यही नहीं बहुगुणा ने टिहरी रियासत के ख़िलाफ़ भी आंदोलन चलाया। दलित वर्ग के उत्थान के लिए उन्होंने टिहरी में ठक्कर बाप्पा हॉस्टल की स्थापना भी की और दलितों को मंदिर में प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आंदोलन भी छेड़ा।
पर्यावरणविद बहुगुणा के निधन की ख़बर मिलते ही देशभर में शोक की लहर दौड़ गई। उनके निधन पर प्रधानमंत्री, राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन समेत अन्य लोगों ने दुख जताया है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन हमारे देश के लिए बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने की सदियों पुरानी परंपरा को जोड़े रखा। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।