एक ऐसी सरकार जिसके प्रधानमंत्री और कई बड़े  मंत्रियों का नाम आतंकवादियों की वैश्विक सूची में दर्ज है।

तालिबान की सरकार से जो डर था, वही कट्टरपंथी की सोच को केंद्र में रखकर सरकार का गठन किया गया है। 
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21 दिनों बाद अफगानिस्तान में तालिबान की अस्थाई सरकार का गठन हो गया है, जिसको तमाम मीडिया में अंतरिम सरकार का नाम दिया जा रहा है, लेकिन यह असल में एक अस्थाई सरकार है । इस सरकार में सिर्फ तालिबान समूह के पुराने चेहरों को ही जगह दी गई है। मुल्लाह मोहम्मद  हसन अखुंद  को प्रधानमंत्री, मुल्लाह बरादर और मौलवी अब्दुल
फ़ोटो क्रेडिट नवभारत टाइम्स
फ़ोटो क्रेडिट: नवभारत टाइम्स
सत्तार हनफी को उपप्रधानमंत्री, सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री और मौलवी मोहम्मद याकूब को रक्षा मंत्री बनाया गया है। प्रधानमंत्री अखुंद ने पिछली तालिबान सरकार के दौरान 1996 से 2001 तक विदेश मंत्री और उपप्रधानमंत्री के तौर पर भी कार्य किया था । जितने भी मंत्री बनाये गए हैं वो सभी तालिबानी है और प्रधानमंत्री सहित कई बड़े मंत्री का नाम वैश्विक आतंकवादी कि सूची में सम्मिलित हैं। मौजूदा तालिबान सरकार के गृहमंत्री पर अमेरिका ने 50 लाख डॉलर का इनाम रखा है और सिराजुद्दीन तथा उसके पिता को 2008 में काबुल में भारतीय दूतावास पर हुए हमले का जिम्मेदार माना जाता है। कब्जे के समय तालिबान ने सभी को सरकार में शामिल करने का वादा किया था, परंतु सरकार गठन के बाद तालिबान का असली चेहरा पूर्ण रूप से सामने आ चुका है। गौरतलब है कि इस सरकार में एक भी गैर तालिबानी चेहरा अभी तक
मौजूद नहीं है और महिलाओं को अभी तक इस सरकार में कोई भी भागीदारी मिलती दिख नहीं रही है। गठित सरकार फिलहाल कार्यवाहक सरकार होगी और आगे भी  इन्हीं कुछ चेहरों में नाम मात्र फेरबदल होगा। तालिबान सरकार अब, लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले देशों के लिए एक नई चुनौती साबित होने जा रहा है, लेकिन ये भी सच है कि आज तक आतंक के दम पर कोई भी राज्य या देश ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया परंतु अब देखना होगा कि यह तालिबानी सरकार कितने दिनों तक अफगानिस्तान पर काबिज रहती है।