राज्यसभा में रुपये गिरने का हंगामा: जांच या Lost & Found का मामला?
संसद टीवी के कैमरे और CCTV के बावजूद, रुपये के मालिक की पहचान नहीं

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राज्यसभा में रुपये की गड्डी मिलने के बाद बड़ा हंगामा।
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संसद टीवी के 18 कैमरों और CCTV के बावजूद, रुपये के मालिक का पता नहीं चला।
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क्या यह एक जांच का मामला है या सिर्फ Lost & Found की समस्या?
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राज्यसभा के कोई नियम नहीं हैं जो कैश ले जाने पर प्रतिबंध लगाते हों।
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क्या यह राजनीतिक हथकंडा है या सिर्फ एक ग़लती?
राज्यसभा में एक चौंकाने वाली घटना हुई जब एक गड्डी रुपये किसी सदस्य की सीट पर पड़ी मिली। दिन भर के बाद भी, किसके रुपये थे, यह पता नहीं चल पाया। यह घटना संसद टीवी के 18 कैमरों और सदन में लगे अन्य CCTV कैमरों के बावजूद हुई, जो लाइव टेलीकास्ट करते हैं। एक विशेष fish-eye लेंस भी लगा हुआ है, जो सदन के हर कोने को एक सिंगल शॉट में कैद करता है। यह लेंस राज्यसभा टीवी के निर्माण के दौरान इसीलिए लगाया गया था ताकि सदन के अंदर हर पल रिकॉर्ड होता रहे।
इस घटना को देखते हुए, सवाल उठता है कि क्या इसमें कोई जांच की आवश्यकता है? क्या यह सिर्फ एक Lost & Found का मामला है? अक्सर, सदन में किसी का फोन, iPad या फाइल छूट जाती है, तो उन्हें काउंटर पर जमा कर दिया जाता है ताकि मालिक उन्हें ले जा सके। इसी तरह, यह भी एक साधारण Lost & Found की स्थिति लगती है। अधिक से अधिक, यह गड्डी पचास हज़ार रुपये की हो सकती है, जिसे रखना ग़ैर क़ानूनी नहीं है। राज्यसभा में कोई ऐसा नियम नहीं है जो सदस्यों को जेब में रुपये ले जाने से रोकता हो या सुरक्षा को सूचित करना ज़रूरी हो।
इस मामले में हंगामा क्यों है? क्या यह राजनीतिक हथकंडा है जहां किसी को फँसाने के लिए इस तरह के टोटके अपनाए जाते हैं? राजनीति में ऐसी कहानियों को हम सुनते आए हैं जहां किसी को फँसाने के लिए उसकी गाड़ी में कोई आपत्तिजनक चीज़ रख दी जाती है या टिफ़िन चोरी के मामले में जेल भेज दिया जाता है। लेकिन संसद जैसे संस्थान में ऐसे हथकंडे पहुंच जाएं, यह चिंताजनक है।
इस घटना की जांच के लिए कोई विशेष कारण नहीं दिखता, क्योंकि यह न तो कोई मनी-लांड्रिंग का मामला है और न ही किसी सदस्य को रिश्वत देने का प्रमाण। सदन में इतनी छोटी राशि के साथ कोई ख़रीद-फरोख्त नहीं हो सकती। फिर भी, सुरक्षा अधिकारियों ने जांच शुरू कर दी है, जिससे हंगामा और बढ़ गया है।
राज्यसभा की सुरक्षा और प्रक्रियाओं की समीक्षा की ज़रूरत है, ताकि ऐसी गलतफहमियाँ न हों। सदन के सदस्यों को भी अपने सामान के प्रति अधिक सचेत रहना चाहिए। यह घटना हमें याद दिलाती है कि संसद जैसे संस्थान में भी साधारण दिनचर्या की गलतियाँ हो सकती हैं, और उन्हें जल्दी से हल किया जाना चाहिए, न कि राजनीतिक रंग देकर हंगामा खड़ा किया जाए।
संसदीय लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए, ऐसी घटनाओं को संभालने में तटस्थ और पारदर्शी तरीके अपनाने चाहिए। इससे सदन की साख बनी रहेगी और राजनीतिक विश्वास को मजबूती मिलेगी।