दिल्ली चुनाव पर चुप्पी: निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों को प्राथमिकता दी, मतदाताओं को छोड़ा
ईसीआई ने ट्विटर पर कहा, लिखित में जवाब देगा लेकिन वास्तविक डेटा का अभाव

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निर्वाचन आयोग ने ट्विटर पर दिल्ली चुनाव के अंतिम मतदान प्रतिशत के बारे में प्रश्नों का जवाब दिया।
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ईसीआई ने राजनीतिक दलों को प्राथमिक हितधारक माना, मतदाताओं को मुख्य माना लेकिन उनकी चिंताओं की अवहेलना की।
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आयोग ने कहा कि वह लिखित में जवाब देगा, लेकिन विस्तृत डेटा की कमी नजर आई।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद, जब आम जनता और राजनीतिक दल अंतिम मतदान प्रतिशत की जानकारी मांग रहे थे, तो निर्वाचन आयोग ने एक अप्रत्याशित कदम उठाया। X (पूर्व में ट्विटर) पर आयोग ने एक जवाब पोस्ट किया जिसमें कहा गया कि वे राजनीतिक दलों को प्राथमिक हितधारक मानते हैं और मतदाताओं की राय, सुझाव और प्रश्नों को बहुत महत्व देते हैं। हालांकि, इस जवाब में दिल्ली चुनाव के वास्तविक मतदान प्रतिशत का कोई उल्लेख नहीं था।
निर्वाचन आयोग ने कहा कि वे लिखित में जवाब देंगे, जिसमें देश भर में एकरूपता से अपनाई गई प्रक्रियाओं और तथ्यों का विस्तृत मैट्रिक्स शामिल होगा। लेकिन यह घोषणा मतदाताओं की उम्मीदों को पूरा करने में विफल रही, जो स्पष्ट और तत्काल डेटा की मांग कर रहे थे। इससे कई लोगों को लगा कि आयोग ने पारदर्शिता और जवाबदेही के मूल मूल्यों की अनदेखी की है।
दिल्ली में चुनाव के बाद, विभिन्न राजनीतिक दलों ने मतदान प्रतिशत के संबंध में अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं, जिसमें कुछ ने चुनाव में गड़बड़ी के आरोप भी लगाए हैं। यह प्रश्न उठाने वाले दलों में आम आदमी पार्टी (आप), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस जैसे प्रमुख दल शामिल हैं।
निर्वाचन आयोग के जवाब ने इस प्रक्रिया में एक अन्य महत्वपूर्ण सवाल उठाया है - क्या आयोग वास्तव में मतदाताओं की आवाज़ सुन रहा है? या फिर राजनीतिक दलों की विभिन्न चिंताएं और सवाल उनकी प्राथमिकता हैं? चुनावी डेटा की पारदर्शिता हमेशा लोकतंत्र के मूल स्तंभों में से एक रही है, और इस मामले में ईसीआई की प्रतिक्रिया ने इस स्तंभ को कमजोर कर दिया है।
प्रतिक्रिया के बाद, सोशल मीडिया और विभिन्न मंचों पर लोगों ने निर्वाचन आयोग की आलोचना की है, उनकी चुप्पी को अपारदर्शिता के रूप में देखा है। सवाल यह है कि जब चुनावों की सत्यता पर सवाल उठे हों, तो क्या आयोग के लिखित जवाब में देरी लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कमजोर नहीं करेगी?
इस घटना ने भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया की विश्वसनीयता और प्रभावशीलता पर एक बड़ी बहस को जन्म दिया है। जनता अब न केवल दिल्ली चुनाव के परिणामों के लिए, बल्कि आयोग के ऑपरेशन में पारदर्शिता के लिए भी इंतजार कर रही है।