रामसेतू बनाने में गिलहरी का योगदान

आपका जितना सामर्थ्य है, उसी के अनुसार धन संचय योजना में अपना योगदान दें।
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रामसेतू बनाने में गिलहरी का योगदान

इस रामसेतु के लिए गिलहरी के योगदान से बहुत खुश हुए और उन्होंने आशीर्वाद देते हुए उसके पीठ पर तीन उँगलियाँ फेरी, उसके पीठ पर तीन ऊँगलियों के निशान आज भी है।

इस समय भगवान राम की चर्चा जोरों से चल रही है और अयोध्या में राममंदिर बनें, इसके लिए लोग वहुत उत्साहित हैं। धन संचय जमा योजना में भारी से भारी मात्रा में भाग ले रहे हैं। राममंदिर निर्माण हेतु अभिनेता अक्षय कुमार ने राम मंदिर धन संचय योजना में योगदान देकर त्रेता के  भगवान राम की कथा पर प्रकाश डालते हुए रामचरित्त मानस की एक महत्त्वपूर्ण और सुंदर कथा का वर्णन करते हुए कहा कि आपका जितना सामर्थ्य है, उसी के अनुसार धन संचय योजना में अपना योगदान दें। इस धन संचय योजना के लिए इस कथा के रहस्य को भी जानना जरूरी है-    

जब रामसेतु बनायी जा रही थी, तो वहाँ मौजूद सभी में अंगद नाम के एक वानर जो पत्थर पर भगवान राम का नाम लिख रहे थे। उनके राम नाम की अद्भुत शक्ति की वजह से पत्थर डूबने के बजाय तैर रही थी। वहाँ उपस्थित लोगों में से कोई ऐसा नहीं था, जो अपना योगदान नहीं दे रहा था। यह देख पेङ पर बैठी गिलहरी बहुत सोच में डूबी कि मेरा शरीर बहुत छोटा है, में करूँ तो क्या करूँ। वह सोचते-सोचते अचानक नीचे उतरी और जाकर पानी में भीगकर किनारे जमा हुए रेत पर लेटने लगी, फिर जाकर जमा पत्थरों पर अपने ऊपर लगी रेत को झाङ देती थी और यह प्रक्रिया वह लगातार कर रही थी। यह देख नारद मुनी को समझ नहीं आया और वो उस गिलहरी के सामने आए और पूछे “मैं परेशान हूँ कि तुम ये क्या कर रही हो ” तब गिलहरी बङे सुंदर भाव से कहती है “मैं छोटी हूँ तो क्या हुआ, मैं अपने सामर्थ्य के अनुसार भगवान पुरूषोत्तम राम की मदद इसी तरह कर रही हूँ।” भगवान राम स्वयं ही अंतर्यामी थे। वे  इस रामसेतु के लिए गिलहरी के योगदान से बहुत खुश हुए और उन्होंने आशीर्वाद देते हुए उसके पीठ पर तीन उँगलियाँ फेरी, उसके पीठ पर तीन ऊँगलियों के निशान आज भी है।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार भगवान राममंदिर के लिए योगदान देते हैं, तो हमसे भाग्यशाली और कोई नहीं है।