आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर क्या है उत्तराखंड की जनता का मिजाज?

9 नवंबर 2000 को राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने बाजी मारी थी। पहले चुनाव से लेकर अभी तक उत्तराखंड की जनता ने हर विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी को जीतने नहीं दिया।
राज्य की गंगोत्री विधानसभा सीट को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू होगी, क्योंकि इस सीट से जुड़े बेहद दिलचस्प चुनावी आंकड़े हैं, जिस भी पार्टी का उम्मीदवार इन सीट पर जीत हासिल करता है राज्य में उसी पार्टी की सरकार बनती है। हालांकि, राजनीतिक पंडित इसे महज एक संयोग मानते हैं।
उत्तराखंड के मतदाताओं का मूड देखा जाए तो लगता है कि अभी भी बीजेपी का प्रभाव इतना कम नहीं हुआ है। हालांकि चार साल में भाजपा के द्वारा जनता को तीन नए मुख्यमंत्रियों के चहरे देना और बेरोजगार जैसे बड़े मुद्दे के कारण, पार्टी की पकड़ जनता में जरूर कमजोर होती जा रही है। हालांकि चुनाव से ठीक पहले कई सरकारी नौकरियों पर भर्तियां शुरू कर दी गई हैं।
कांग्रेस का भी जनता में अच्छा प्रभाव है और एक सर्वे के अनुसार जनता में मुख्यमंत्री के रूप में हरीश रावत पहली पसंद है। दोनों बड़ी पार्टी का सत्ता में आने का समीकरण इस बार आम आदमी पार्टी भी बिगाड़ सकती है, क्योंकि कर्नल कोठियाल को सीएम उम्मीदवार बनाकर कुछ प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी अपनी तरफ खींचने में कामयाब रह सकती है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि किस पार्टी के मतदाता आम आदमी पार्टी के साथ जाते हैं। इस बार भी भाजपा और कांग्रेस में सीधी टक्कर देखने को मिलेगी। क्षेत्रीय पार्टी उक्रांद, आम आदमी पार्टी, बसपा और निर्दलीय को बहुत कम सीटों पर ही संतुष्ट करना पड़ सकता है लेकिन बीजेपी या कांग्रेस पार्टी को सरकार बनाने के जादुई आंकड़े तक पहुंचाने के लिए अहम साबित हो सकते हैं।